मिशन चंद्रयान-2 विक्रम लैंडर का इसरो से संपर्क टूटा

Share Now

चंद्रयान-2 के चांद पर उतरने को लेकर आम हो या खास हर कोई नजरे गड़ाए हुए था। सभी उस एक पल का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे और सुनहरे दृश्य को अपनी आंखों में हमेशा के लिए कैद करना चाहते थे। हालांकि चंद्रयान-2 के चांद पर उतरने से ठीक पहले लैंडर विक्रम का संपर्क टूट गया और वैज्ञानिक परेशान हो गए।

वैज्ञानिकों का हौसला बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसरो कंट्रोल सेंटर से वैज्ञानिकों को संबोधित किया। चंद्रयान-2 का लैंडर विक्रम से संपर्क टूटने पर सोशल मीडिया पर भी लोग अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं। इस बीच सिनेमाजगत की हस्तियों ने भी भावुक पोस्ट किए। पीएम के सामने रो पड़े इसरो अध्यक्ष के सिवन, भावुक मोदी ने गले लगाया।

विक्रम लैंडर का इसरो से संपर्क टूट, पीएम वैज्ञानिकों से बोले- हिम्मत रखो

अंतरिक्ष में इतिहास रचने के भारत एकदम करीब पहुंच गया था लेकिन चंद्रमा के तल से केवल 2.1 किलोमीटर ऊपर चंद्रयान का इसरो से संपर्क टूट गया। पूरी तरह स्वदेशी चंद्रयान-2 का लैंडर (विक्रम) शुक्रवार-शनिवार की दरमियानी रात 1:53 बजे चांद पर उतरने वाला था। रात करीब ढाई बजे इसरो अध्यक्ष के सिवन ने बताया कि ‘यान का संपर्क टूट गया है। 978 करोड़ रुपये की लागत वाले इस मिशन का सबकुछ खत्म नहीं हुआ है। एक अधिकारी ने बताया कि मिशन का केवल पांच प्रतिशत (लैंडर विक्रम और प्रज्ञान रोवर) नुकसान हुआ है। 95 प्रतिशत ऑर्बिटर सफलतापूर्वक चांद के चक्कर काट रहा है।
ऑर्बिटर की अवधि एक साल है यानी वह इसरो को तस्वीरें भेजता रहेगा। इसरो के एक अधिकारी ने बताया कि ऑर्बिटर लैंडर की तस्वीरें भी भेज सकता है। जिससे कि उसकी स्थिति के बारे में पता चल सकता है। चंद्रयान-2 के तीन हिस्से हैं-  ऑर्बिटर (2,379 किलोग्राम, आठ पेलोड), विक्रम (1,471 किलोग्राम, चार पेलोड) और प्रज्ञान (27 किलोग्राम, दो पेलोड)। दो सितंबर को विक्रम ऑर्बिटर से अलग हो गया था। जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हिकल-मार्क 3 (जीएसएलवी एमके 3) के जरिए चंद्रयान-2 को 22 जुलाई को अंतरिक्ष में लॉन्च किया गया था।
11 साल से तैयारी
चंद्रयान-2 मिशन को 2008 में मंजूरी मिली थी। इसके बाद सबसे बड़ी चुनौती लैंडर और रोवर की टेस्टिंग थी। इसके लिए चंद्रमा जैसी मिट्टी, कम ग्रेविटी वाला क्षेत्र, चांद पर पड़ने वाली चमकदार रोशनी और वातावरण वैसा ही रीक्रिएट करने की जरूरत थी। इसका एक तरीका था अमेरिका से सिमुलेटेड लूनर सॉयल (चांद जैसी मिट्टी) लाना। जिसकी प्रति किलो कीमत 10,752 रुपये है। हमें इस तरह की 70 टन मिट्टी की जरूरत थी। इसकी लागत काफी अधिक थी इसलिए तय किया गया कि थोड़ी सी मिट्टी अमेरिका से खरीदी जाए और उसका अध्ययन करके ऐसी ही मिट्टी को ढूंढा जाए।
तमिलनाडु में मिली चांद जैसी मिट्टी
इसके बाद पता चला कि तमिलनाडु के सालेम में एनॉर्थोसाइट नाम की चट्टानें हैं जो चांद की चट्टानों से मिलते हैं। जिस मिट्टी को खरीदने के लिए हमें 72 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ते वह काम मुफ्त में हो गया। त्रिची के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, पेरियार यूनिवर्सिटी और बेंगलुरू के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस ने उन चट्टानों को पीसकर चंद्रमा जैसी मिट्टी तैयार की। वहां से मिट्टी को इसरो सैटेलाइट इंटीग्रेशन एंड टेस्टिंग एस्टेब्लिशमेंट बेंगलुरू लाया गया और वहां दो मीटर मोटी सतह बनाई गई। यहां उतनी ही रोशनी रखी गई जितनी चांद पर है। यहां 2015 से अब तक हजारों बार लैंडिंग कराई गई। चांद पर गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्वी से छह गुना कम है जिसके लिए हीलियम गैस का इस्तेमाल किया गया।

देश का महत्वाकांक्षी मिशन चंद्रयान-2 चांद के दक्षिणी ध्रुव पर मैग्नीशियम, कैल्शियम और लोहे जैसे खनिजों को खोजने का प्रयास करेगा। वह चांद के वातावरण और इसके वजूद से संबंधित आंकडे़ जुटाएगा। चंद्रयान-2 का सबसे खास मिशन वहां पानी या उसके संकेतों की खोज होगी।
अगर चंद्रयान-2 यहां पानी के सबूत खोज पाता है तो यह अंतरिक्ष विज्ञान के लिए एक बड़ा कदम होगा। पानी और ऑक्सीजन की व्यवस्था होगी तो चांद पर बेस कैंप बनाए जा सकेंगे, जहां चांद से जुड़े शोधकार्य के साथ-साथ अंतरिक्ष से जुड़े अन्य मिशन की तैयारियां भी की जा सकेंगी। अंतरिक्ष एजेंसियां मंगल ग्रह तक पहुंचने के लिए चांद को लॉन्च पैड की तरह इस्तेमाल कर पाएंगी। इसके अलावा यहां पर जो भी खनिज पदार्थ होंगे, उनका भविष्य के मिशन में इस्तेमाल कर सकेंगे।
यहां से रखी जा रही है नजर
चंद्रयान-2 पर बंगलूरू स्थित इसरो के टेलीमेट्री, ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क के साथ बायलालू स्थित इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क से नजर रखी जा रही है। यहां पर मौजूद करीब 100 वैज्ञानिकों की टीम मिशन पर निगरानी के साथ-साथ उसे तय योजना के मुताबिक लक्ष्य तक पहुंचने को अंजाम देने में बीते 48 दिनों से दिन-रात लगी हुई है।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO – Indian Space Research Organisation) ने शुरुआत से ही चंद्रयान 2 की कई तस्वीरें सार्वजनिक की हैं। आपने हमेशा इसकी तस्वीरों में देखा होगा कि ये सैटेलाइट किसी सुनहरी चीज में लिपटा होता है। सिर्फ चंद्रयान 2 ही नहीं, अंतरिक्ष में भेजा जाने वाला कोई भी सैटेलाइट इसी तरह सोने सी परत में लपेटा जाता है।

क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों किया जाता है? क्यों हमारे वैज्ञानिक सैटेलाइट्स पर ये सोने सी परत चढ़ाते हैं? क्या सिर्फ इसरो ही ऐसा करता है या नासा भी? क्या ये सुनहरी परत सोने से बनी होती है? इन सभी सवालों के जवाब काफी रोचक हैं। ये जवाब हम आपको आगे दे रहे हैं।

सैटेलाइट्स को जिस सुनहरी चीज में लपेटा जाता है उसे मल्टी लेयर इंसुलेशन (MLI) कहते हैं। यह काफी हल्का लेकिन बेहद मजबूत होता है। काफी पतली-पतली सतहों को मिलाकर एक मोटी परत बनाई जाती है, जिसे वैज्ञानिक भाषा में मल्टी लेयर इंसुलेशन का नाम दिया गया है। आम भाषा में लोग इसे गोल्ड प्लेटिंग भी कहते हैं। आगे पढ़ें, क्या ये सोने से बना होता है?

मल्टी लेयर इंसुलेशन में पॉलिमाइड या पॉलीस्टर फिल्म्स का इस्तेमाल किया जाता है। ये फिल्म्स एक अलग-अलग तरह की प्लास्टिक्स होते हैं, जिनकी एल्युमिनियम की पतली परतों से कोटिंग की जाती है। इसमें सोने का भी इस्तेमाल होता है। हालांकि हमेशा सोने का प्रयोग जरूरी नहीं होता। यह इस बात पर निर्भर करता है कि सैटेलाइट कहां तक जाएगा, किस ऑर्बिट में रहेगा। आगे पढ़ें, क्यों होता है इस परत का इस्तेमाल?

विज्ञान ने ये सिद्ध किया है कि सोना सैटेलाइट की परिवर्तनशीलता, चालकता (कंडक्टिविटी) और जंग के प्रतिरोध को रोकता है। इसके अलावा जिन धातुओं का इस्तेमाल इस कोटिंग में होता है वे भी एयरोस्पेस इंडस्ट्री में बेदह मूल्यवान हैं। इनमें थर्मल कंट्रोल प्रॉपर्टी होती है। यानी ये परत हानिकारक इन्फ्रारेड रेडिएशन, थर्मल रेडिएशन को रोकने में मदद करती है।

सोना सहित अन्य धातुओं से बनी इस परत से अगर सैटेलाइट को ढका नहीं जाएगा, तो अंतरिक्ष में होने वाले रेडिएशन इतने खतरनाक होते हैं कि वे सैटेलाइट को तुरंत नष्ट कर सकते हैं। ये परत सैटेलाइट के नाजुक उपकरणओं, इसके सेंसर्स को इससे टकराने वाली हर तरह की वस्तुओं से भी बचाती है। आगे पढ़ें, क्या नासा भी करता है इस परत का इस्तेमाल?

हां, नासा भी अंतरिक्ष में भेजने वाली सैटेलाइट्स पर अंतरिक्ष यात्रियों के स्पेस सूट में सोने व इस तरह की परत का इस्तेमाल करता है। अपोलो लूनर मॉड्यूल में भी नासा ने सैटेलाइट बनाने में सोने का इस्तेमाल किया था।

नासा के इंजीनियरों के अनुसार, गोल्ड प्लेट की एक पतली परत का उपयोग एक थर्मल ब्लैंकेट की शीर्ष परत के रूप में किया गया था। ये ब्लैंकेट अविश्वसनीय रूप से 25 परतों में जटिलता से तैयार किया गया। इन परतों में कांच, ऊन, केप्टन, मायलर और एल्यूमीनियम जैसे धातु भी शामिल थे। आगे पढ़ें, किस नाम से जाना जाता है इस परत में इस्तेमाल होने वाला गोल्ड?

मल्टी लेयर इंसुलेशन (MLI) में इस्तेमाल होने वाले सोने को लेजर गोल्ड के नाम से जानते हैं। लेजर गोल्ड को सबसे पहले जेरॉक्स के लिए बड़े पैमाने पर विकसित किया गया था। इसे बनाने वाली कंपनी को अपनी कॉपी मशीनों के लिए टिकाऊ सोने के वर्क की जरूरत थी। नासा ने तब इसकी तकनीक के बारे में जाना, उसके बाद इसे बड़े पैमाने पर प्लेटिंग के लिए इस्तेमाल किया।

अंतरिक्ष यात्रियों के स्पेस सूट में भी सोने का इस्तेमाल किया जाता है। इसका कारण ये है कि सोना इन्फ्रारेड किरणों को रिफ्लेक्ट करने में पूरी तरह सक्षम है। साथ ही यह बाहर से आने वाली रोशनी को भी नहीं रोकता। इसलिए इसकी पतली परत का इस्तेमाल एस्ट्रोनॉट्स के हेलमेट के वाइजर (wisor) में किया जाता है। ताकि वे आसानी से बाहर देख सकें और सूर्य की बिना छनी हुई हानिकारक किरणों से उनकी आंखें भी सुरक्षित रहें।

1,061 thoughts on “मिशन चंद्रयान-2 विक्रम लैंडर का इसरो से संपर्क टूटा”

  1. The assignment submission period was over and I was nervous, casinosite and I am very happy to see your post just in time and it was a great help. Thank you ! Leave your blog address below. Please visit me anytime.

  2. Looking at this article, I miss the time when I didn’t wear a mask. bitcoincasino Hopefully this corona will end soon. My blog is a blog that mainly posts pictures of daily life before Corona and landscapes at that time. If you want to remember that time again, please visit us.

  3. I am not sure where you are getting your information, but great
    topic. I needs to spend some time learning
    more or understanding more. Thanks for wonderful info I was
    looking for this information for my mission.

  4. Oh my goodness! Impressive article dude! Thank you so much, However I am experiencing problems with your RSS. I donít know the reason why I am unable to subscribe to it. Is there anybody getting similar RSS problems? Anyone who knows the answer will you kindly respond? Thanks!!

  5. This is the perfect website for everyone who really wants to find out about this topic. You realize a whole lot its almost hard to argue with you (not that I personally will need toÖHaHa). You certainly put a fresh spin on a topic which has been written about for ages. Great stuff, just excellent!

  6. The assignment submission period was over and I was nervous, totosite and I am very happy to see your post just in time and it was a great help. Thank you ! Leave your blog address below. Please visit me anytime.

  7. Your writing is perfect and complete. baccaratsite However, I think it will be more wonderful if your post includes additional topics that I am thinking of. I have a lot of posts on my site similar to your topic. Would you like to visit once?